महाभारत का वो योद्धा जिसको आज भी जिंदा माना जाता है

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हाइलाइट्स

अश्वताथामा उस 08 शख्सियतों में एक, जिनके बारे में बारे में माना जाता है कि वह अब भी जीवित हैं
वह गुरु द्रोण और कृपी के पुत्र थे, जन्म के साथ वह माथे पर मणि लेकर पैदा हुए थे
कहा जाता है कि कृष्ण से शापित होने के बाद वह जंगलों में चले गए और अब भी वहीं हैं

महाभारत के एक योद्धा को आज भी जिंदा माना जाता है. उन्हें लेकर बहुत ढेर सारे रहस्य हैं. उस योद्धा का नाम अश्वत्थामा था. वह महाभारत के युद्ध में मरे नहीं थे बल्कि जिंदा ही जंगलों में लोप हो गए थे. चूंकि उन्हें भगवान शंकर से अमरता का वरदान मिला हुआ था, लिहाजा लोग मानते हैं कि ये योद्धा आज भी जीवित है. ये या तो हिमालय में कहीं हो सकता है या फिर देश के घने जंगलों में रह रहा होगा.

अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे. हमारे पुराणों और मिथकों में जिन 08 शख्सियतों को आज भी जिंदा माना जाता है, उसमें वह एक हैं. यही वजह थी कि महाभारत युद्ध के बाद भी वह जीवित थे.

अश्वत्थामा के साथ खासियत ये थी कि उन्हें अगर भगवान शंकर से अमरत्व का वरदान हासिल था तो जन्म के साथ उन्हें एक ऐसी मणि मिली थी, जो सभी तरह की विपत्तियों से उनकी रक्षा करती थी, इसे वह माथे के केंद्र में रखते थे. ये कहा जाता है कि ये ऐसा रत्न था, जो ना केवल शक्ति देता था बल्कि भूख, प्यास और थकान से बचाने में भी मदद करता था.

कैसे पड़ा अश्वत्थामा नाम
अश्वत्थामा जैसा नाम रखा नहीं जाता. इसलिए इस नाम को विचित्र ही कहेंगे. उनके इस नामकरण की कहानी भी है. कहा जाता है कि जब गुरु द्रोण के घर इस बालक का जन्म हुआ तो उसने अश्व यानि घोड़े की तरह ध्वनि की. फिर आकाशवाणी हुई कि इस बालक को अश्वत्थामा के नाम से जाना जाएगा.

अश्वत्थामा जब पैदा हुए, तो मस्तक पर मणि लेकर पैदा हुए.

महाभारत की कथाएं कहती हैं कि अश्वत्थामा के सिर पर जन्म से ही मणि थी. एक बार द्रौपदी ने महाभारत में अर्जुन की प्रार्थना पर गुरु पुत्र को प्राण दान दे दिया लेकिन सजा के तौर पर मणि उनसे छीन ली.

क्या जीवित हैं अश्वत्थामा
मध्य प्रदेश में महू से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित विंध्याचल की पहाड़ियों पर खोदरा महादेव विराजमान हैं. इस जगह को अश्वत्थामा की तपस्थली के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि आज भी अश्वत्थामा यहां आते हैं. मध्य प्रदेश के साथ ओडिसा और उत्तरांचल में भी अश्वतथामा को देखे जाने की कहानियां कही जाती हैं.

महाभारत के युद्ध के समाप्त होने के बाद कौरवों की ओर से सिर्फ तीन योद्धा ही बचे थे कृप, कृतवर्मा और अश्वत्थामा. अश्वत्थामा चुपचाप जंगलों की ओर चले गए थे. पांडवों ने उन्हें खोजने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाए.

क्यों पांडवों के छल से अश्वत्थामा नाराज हुए
अश्वत्थामा ने इस बात के लिए कभी पांडवों को माफ नहीं किया था क्योंकि उन्होंने छल से उनके पिता गुरु द्रोणाचार्य को मारा था. दरअसल हुआ ये कि गुरु द्रोण को सामान्य तरीके से हराना मुश्किल था. लिहाजा जब द्रोण युद्ध स्थल पर आए तो युधिष्ठर को ये कहने के लिए कहा गया – अश्वत्थामा मारा गया, हाथी या मनुष्य.

अश्वत्थामा को उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, मध्य प्रदेश और ओडिसा के जंगलों में देखे जाने की चर्चाएं अब भी होती रहती हैं.

जब द्रोण रणक्षेत्र में रथ के साथ दाखिल हुए तो युधिष्ठर ने ऐसा ही कहा लेकिन उनके अश्वत्थामा मारा गया कहते ही ऐसी तेज आवाज की गई कि आगे की बात सुनाई ही ना दे. द्रोण को लगा कि उनका पुत्र मारा गया. लिहाजा वो शोकाकुल हो गए और रथ से उतर कर शोक मनाने लगे. ऐसे समय ही भीम ने उन्हें अपनी गदा के वार से मार दिया.

अश्वत्थामा क्रोध में पागल हो गए
अश्वत्थामा को जब ये बात मालूम हुई तो क्रोध में पागल होकर पांडवों की सेना के एक बड़े हिस्से को तहस-नहस कर दिया. इसके बाद भी उसका गुस्सा शांत नहीं हुआ. उसी समय पांडवों ने एक और छल करके उसके नारायण शस्त्र को बर्बाद कर दिया.

इससे उसका गुस्सा और बढ़ गया. वह रात में पांडवों के पंडाल में गया, जहां पांचों पांडव सोते थे, वहां आग लगा दी. हालांकि उस रात उस पंडाल में पांच लोग जरूर थे लेकिन वो पांडवों के पांच पुत्र थे. पांडव वहां नहीं थी. पांचों पुत्र मारे गए. इसके बाद अर्जुन ने प्रतीज्ञा ली कि वह अश्वत्थामा को नहीं छोड़ेंगे. इससे बचने के लिए अश्वत्थामा युद्ध छोड़कर जंगलों में ऐसा विलीन हुआ कि उसके बाद दिखा ही नहीं.

कृष्ण का शाप भी लगातार करता रहा पीछा
हालांकि ये भी कहा जाता है कि पांडवों ने उसे पकड़ा और उसके माथे से मणि निकल ली. वह लहुलुहान हो गया. तब कृष्ण ने उसे शाप दिया कि अब वह इसी हालात में जिंदगी गुजारेगा. मर भी नहीं सकेगा. तब से ही अश्वत्थामा के बारे में कहा जाता है कि इसी खराब स्थिति में जिंदा ही वनों में भटकता रहेगा.

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