सियासत में कभी वर्चस्व रखने वाले आजम घर तक सिमटे: परिवार से प्रत्याशी परम्परा टूटने पर अब्दुल्ला नहीं ले रहे इंटरेस्ट, हाईकमान के फैसले पर कैसे लगे मोहर
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रामपुर44 मिनट पहले
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सियासत का पर्यावाची बन चुके आजम खान के गढ़ रामपुर में उनकी वर्चस्व वाली सीट पर चुनाव हो और वह खुद या परिवार सक्रिय न हो, ऐसा मुमकिन नहीं है, लेकिन वास्तव में ऐसा ही हो रहा है। आजम खान इस चुनाव में घर तक सिमटे हुए नजर आ रहे हैं। ऐसा उनकी बीमारी की वजह से हो सकता है, या फिर वह कुछ और संदेश देना चाहते हैं।
आजम खान के परिवार से परंपरागत तरीके से प्रत्याशी नहीं होने के चलते अब्दुल्ला आजम भी स्वार सीट के उपचुनाव में खास सक्रिय नजर नहीं आ रहे हैं। रामपुर की सियासत में वर्चस्व रखने वाले आजम खान आखिर खामोश और उनकी सक्रियता कम क्यों है, आइए कुछ घटनाओं पर नजर डालकर इसकी पड़ताल करते हैं!
आजम खान का रामपुर में वर्चस्व रहा है, खासकर बिलासपुर और मिलक सीट को छोड़कर। स्वार सीट मुस्लिम बाहुल्य सीट है। इस सीट पर उनके बेटे अब्दुल्ला आजम दो बार विधायक रहे हैं। दोनों ही बार उनकी सदस्यता रद्द होने के चलते सीट पर चुनाव हो रहा है।
अब्दुल्ला के साथ पत्नी को बनाया था डमी कैंडिडेट
इस सीट पर आजम खान ने दोबारा वर्ष 2022 में चुनाव लड़ाया, तो अपने बेटे अब्दुल्ला को चुनाव लड़ाया। हालंकि वह उस समय जेल में थे, लेकिन सीट किसी कीमत छोड़ना नहीं चाहते थे, जिसके चलते आजम ख़ान ने अब्दुल्ला के साथ साथ डमी कैंडिडेट के तौर पर अपनी पत्नी डॉ तजीन फातिमा को उतारा था। इससे साफ जाहिर है कि आजम खान के लिए सीट कितनी खास है। लेकिन इस बार आजम खान ने इस उपचुनाव अपने परिवार का भी प्रत्याशी नहीं उतारा, वहीं आखिरी समय तक न ही किसी नाम की प्रत्याशा जाहिर की। हालांकि इस बीच वह बीमार हो गए।
सपा प्रत्याशी के नामांकन में नहीं पहुंचा कोई बड़ा नेता
आखिरकार सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को खुद ही फैसला करना पड़ा। करीब एक साल पहले बसपा से निष्कासित जिला पंचायत सदस्य अनुराधा चौहान को नामांकन के चंद घंटे पहले प्रत्याशी घोषित किया गया। यहीं नहीं अनुराधा चौहान ने नामांकन समाप्त होने से आधे घंटे पहले नामांकन अकेले ही करा दिया। उनके नामांकन में अब्दुल्ला आजम या सपा का कोई बड़ा नेता भी नहीं दिखा। हालांकि आजम खान इस समय दिल्ली में स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे। जबकि पहले कभी ऐसा नहीं हुआ कि आजम खान ने लाव लश्कर के साथ पर्चा दाखिल न किया हो। वहीं दूसरी घटना यह है कि ऑपरेशन कराने के बाद आजम खान ईद के मौके पर रामपुर पहुंचते हैं और चंद घंटों बाद पार्टी कार्यालय जाकर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हैं। उनके साथ अब्दुल्ला आजम भी मौजूद रहते हैं, लेकिन अनुराधा अपने विधानसभा क्षेत्र में अकेले ही प्रचार करती हैं।
सियासी गढ़ के दो दुर्ग हार चुके आजम का तीसरा दुर्ग खतरे में
आजम खान अपना ध्यान सिर्फ निकाय चुनाव पर ही केंद्रित किए हुए हैं। इससे जाहिर है कि अक्सर चुनाव में दिन रात एक करने वाले आजम और उनका परिवार घर तक ही सिमट कर रह गया है। हालांकि नगर पालिका के चुनाव के लिए प्रचार करने की सूचना है। ऐसे में सवाल उठता है कि अपने परंपरागत दो मोर्चे यानी एमपी सीतबौर शहर सीट भाजपा से हार चुके आजम खान इस तीसरे मोर्चे यानी स्वार सीट को कैसे बचाएंगे। हालांकि स्वार सीट पर सपा और भाजपा में ही यलगार देखी जा रही है। कुल 6 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिसमें एक पीस पार्टी और 3 निर्दलीय उम्मीदवार हैं। मुस्लिम बाहुल्य सीट पर एक तरफ भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल एस का मुस्लिम चेहरा शफीक अहमद अंसारी और दूसरा सपा की हिंदू उम्मीदवार अनुराधा चौहान हैं।
सभी बड़ी पार्टियों का रहा है स्वार सीट पर कब्जा
इस सीट पर तकरीबन सभी बड़ी पार्टियों का कब्जा रहा है। कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और जनसंघ तक के कैंडिडेट को विधायक बनने का मौका मिला। इस सीट पर निर्दलीय दावेदार भी जीत चुके हैं। स्वार सीट पर सबसे ज्यादा बार कांग्रेस ने परचम लहराया है।
ये रहा है इतिहास
वर्ष 1951 से लेकर 1962 तक कांग्रेस के महमूद अली खां चुनाव जीते। 1967 में मकसूद हसन स्वतंत्र पार्टी से जीते थे। वहीं 1969 में भारतीय जनसंघ के राजेन्द्र शर्मा पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद 1974 और 1977 में कांग्रेस इस सीट पर दोबारा काबिज हो गई और सैय्यद मुर्तजा अली खां, मकबूल अहमद ने चुनाव जीते।
1980 में स्वार सीट भाजपा की झोली में गई। भाजपा के चौधरी बलवीर सिंह विधायक बने थे। वर्ष 1985 का चुनाव कांग्रेस की तरफ से निसार हुसैन ने जीता। इसके बाद 1989 से लेकर 1996 तक इस सीट पर भाजपा काबिज रही। शिवबहादुर सक्सेना इस सीट पर 4 बार विधायक बने। 2002 में नवाब परिवार के काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां ने कांग्रेस के टिकट पर सीट कब्जाई। 2007 में नावेद मियां ने चुनाव सपा की ओर से लड़कर जीता। सत्ता परिवर्तन होने पर सपा छोड़कर बसपा के टिकट पर उपचुनाव लड़ा, जिसमें जीत हासिल की।
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